आज चाहे कोई राजनीतिक दल हो, कोई भी विचार हो, आंबेडकर सबकी जरूरत बन गए हैं : मास्टर ओमपाल सिंह

हरिद्वार। गढ़मीर पुर में बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें गांव के लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। कार्यक्रम संयोजक मास्टर दलीप कुमार ने कहा कि बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की जो निर्मिति है, वह लोकतंत्र की यात्रा के साथ-साथ विकसित और व्यापक होती जा रही है। आंबेडकर ऐसे समय में आए, जब औपनिवेश का समय था, तब उन्होंने वंचित समाज के मुद्दे उठाए। उस समय उनका जो प्रभाव था, आज उससे कई गुना ज्यादा हो गया है। उन्होंने पूरे समाज को प्रभावित किया और हम देख रहे हैं, लोकतंत्र में उनकी जगह निरंतर बढ़ती चली जा रही है।

उन्होंने ने कहा कि वह समाज, राजनीति व अर्थशास्त्र के विषद अध्ययन का इस्तेमाल वैकल्पिक मार्ग दिखाने में करते रहे। इसीलिए, भारत की संविधान सभा के सदस्य और संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष के तौर पर उनका इतना योगदान रहा कि उनको ही संविधान का लेखक या निर्माता माना जाता है। अगर आज के संदर्भ में देखा जाए, तो यहीं उनका सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण योगदान है। नागरिकों के मूल अधिकार, समता और सामाजिक न्याय के सिद्धांत इसीलिए संविधान में प्रभावी रूप से शामिल किए गए हैं। वैसे, क्या संविधान लिख देने से काम हो गया? याद रखना चाहिए कि 20वीं सदी की शुरुआत में जब आंबेडकर की राजनीतिक-सामाजिक चेतना बन रही थी, तब का हाल क्या था?

वक्त के साथ उनके साथ नए-नए तत्व जुड़ते जा रहे हैं। उन्होंने दलित समाज, भारतीय समाज और लोकतंत्र के लिए भी खूब चिंतन किया है। आंबेडकर के प्रभाव में दलित व वंचित समुदाय लगातार सतर्क और जागरूक होते जा रहे हैं। आंबेडकर के प्रभाव में इन समुदायों का लोकतांत्रिक मूल्य भी बढ़ता जा रहा है। जाहिर है, जब उसका मूल्य बढ़ रहा है, तो सबकी जरूरत भी बढ़ रही है।

इन समुदायों में जागरूकता बढ़ने में शिक्षा की भी बड़ी भूमिका है, आंबेडकर खुद भी शिक्षा को बहुत मूल्यवान मानते थे। राजनीति में भी आंबेडकर के नए-नए स्वरूप बन रहे हैं। दक्षिण भारत में एक अलग तरह का आंबेडकरवादी आंदोलन है, महाराष्ट्र में अलग आंबेडकर हैं, तो उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में अलग हैं।

मास्टर ओमपाल सिंह ने कहा कि आज चाहे कोई राजनीतिक दल हो, कोई भी विचार हो, आंबेडकर सबकी जरूरत बन गए हैं। भारतीय समाज की आज जो राजनीति है, उसके अधिकतर हिस्से को आंबेडकर ने प्रभावित कर रखा है। वह आज भी समाज को संबोधित कर रहे हैं और इसका सिद्धांत भी है और व्यवहार भी। वह समस्या भी बताते हैं और समाधान भी देते हैं, इसलिए आंबेडकर हमारे लोकतंत्र में विचार-व्यवहार में निरंतर साथ खड़े मिलते हैं। उनके निर्माण में नए-नए रंग जुड़ते जा रहे हैं, जैसे एक तरफ आंबेडकर वाम की जरूरत हैं, तो दक्षिणपंथ की भी जरूरत हैं। वह दलित समूह की जरूरत तो हैं ही, व्यापक भारतीय राजनीति की भी जरूरत हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *